स्वास्थ्य-चिकित्सा >> चमत्कारिक तेल चमत्कारिक तेलउमेश पाण्डे
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महाभृंगराज तेल
शिर, कर्ण, नेत्र, केश आदि पर परम उपकार करने वाला यह तेल सिद्ध करना अत्यन्त ही सरल है। इसके सिद्धिकरण हेतु किसी शुद्ध स्थान अर्थात् जहां मल-मूत्र आदि न किये गये हों, वहां से पर्याप्त मात्रा में भांगरा तोड़ लायें। इस भांगरे को जल से धोकर इसका रस निकाल लें। यह रस जितना हो उसकी एक चौथाई मात्रा में तिल का तेल इसमें मिलाकर इस मिश्रण को पकायें। अब उपरोक्त मिश्रण में जितना तेल लिया गया हो उतनी मात्रा में नीचे लिखे हुये सभी पदार्थ बराबर-बराबर के अनुपात में लें। कहने का तात्पर्य यह है कि यदि तेल एक किलो लिया गया हो तो अग्रांकित लिखे हुये सभी पदार्थों को बराबर-बराबर मात्रा में इतना लें कि सब मिलकर एक किलो हो जायें। इन सभी पदार्थों को गाय के पर्याप्त दूध में पीसकर कल्क कर लें। इस कल्क को पकते हुये उत्त मिश्रण में डाल दें। पकते हुये जब केवल तेल रह जाये तब उसे छानकर सुरक्षित रख लें। यही महाभृंगराज तेल है। इसमें जिन पदार्थों का दूध में कल्क बनाया जाता है, वे हैं- मजीठ, पद्माख, लोध, चंदन, गेरू, खिरेंटी, हल्दी, दारूहल्दी, नागकेशर, फूल प्रियंगु, मुलेठी, पुण्डरिया तथा अनंतमूल।
उपरोक्तानुसार सिद्ध किया हुआ महाभृंगराज तेल केश, सिल, कर्ण, नेत्रस गलग्रह आदि पर अपना उत्तम प्रभाव दिखाता है। इसके लाभ निम्नांकित होते हैं:-
> इस तेल के प्रयोग से असमय बालों का झड़ना रुक जाता है।
> इसकी नित्य सिर में मालिश करने से शिरोपीड़ा में बहुत आराम होता है।
> इसकी मालिश करने से कुष्ठ रोग नहीं होता। यही नहीं, कुष्ठ रोगी इस तेल को लगाकर लाभान्वित होते हैं।
> इसको गले पर मालिश गलग्रह में फायदा करती है।
> इस तेल की 1-2 बूंद का नस्य लेने से नासा रोगों के होने की संभावना नहीं रहती। नासिका मार्ग खुला रहता है, नाक में फुसी नहीं होती।
> कान में इसकी एक बूंद डालने से श्रवण शक्ति बढ़ती है, कान में फफूंद नहीं जमती। प्रयोग 3-4 दिन तक दिन में एक बार करें।
> इसके प्रयोग से बाल सुन्दर, घने, चमकदार तथा धुंघराले भी हो जाते हैं।
> इस तेल के प्रयोग से इन्द्रलुप्त रोग में अत्यधिक लाभ होता है।
> गंजे लोगों को इसके प्रयोग से लाभ होता है अर्थात् यह खालित्य रोग में भी लाभ करता है।
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